देश की सैन्य शक्ति और आत्मनिर्भरता की पहचान बनी ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलें अब सिर्फ रक्षा प्रणाली का हिस्सा नहीं रहेंगी, बल्कि अब उनकी शौर्य गाथा भारत के बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में भी पढ़ाई जाएगी।
📍 नई दिल्ली | विधिक आवाज़ समाचार नेटवर्क
✍️ रिपोर्ट: विश्वामित्र अग्निहोत्री
शिक्षा मंत्रालय ने इस पर कार्य शुरू कर दिया है और जल्दी ही यह सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराकर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाई जाएगी।
🇮🇳 क्यों चुनी गई ब्रह्मोस और आकाश?
इन दोनों मिसाइलों ने हाल के वर्षों में भारत की सैन्य ताकत को नई पहचान दिलाई है।
विशेषज्ञों के अनुसार —
🔹 ब्रह्मोस मिसाइल: सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, जिसे भारत और रूस ने मिलकर बनाया है। यह दुश्मन के क्षेत्र में बेहद तेज़ और सटीक हमला करने में सक्षम है।
🔹 आकाश मिसाइल: स्वदेशी विकसित की गई यह सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल दुश्मन के विमानों और ड्रोनों को मार गिराने में सक्षम है।
इन मिसाइलों ने ऑपरेशन सिंदूर जैसे गुप्त अभियानों में पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश को घुटनों पर लाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी।
🧠 अब बच्चों को मिलेगा देशभक्ति से जुड़ा ज्ञान
शिक्षा मंत्रालय का उद्देश्य है कि स्कूली बच्चे सिर्फ विज्ञान और तकनीक ही नहीं, बल्कि देश की सैन्य उपलब्धियों और पराक्रम की भी जानकारी प्राप्त करें।
बिलकुल उसी तरह जैसे चंद्रयान, मंगलयान, और परमाणु परीक्षण को बच्चों की किताबों में शामिल किया गया।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार:
“देश को मजबूत बनाने में सेना और रक्षा अनुसंधान की भूमिका बच्चों को बताना बेहद जरूरी है। इससे उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ देशभक्ति भी पैदा होगी।”
📚 सभी भाषाओं में आएगा पाठ्यसामग्री
शुरुआत में यह कक्षा 6 से 10वीं तक के विद्यार्थियों के लिए सामान्य विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की किताबों में जोड़ा जाएगा।
बाद में इसे राज्य बोर्ड, CBSE, ICSE और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू किया जाएगा।
सामग्री को हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, बांग्ला, तेलुगू सहित सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
🎯 उद्देश्य क्या है?
✅ राष्ट्रभक्ति से भरपूर शिक्षा
✅ स्वदेशी रक्षा तकनीक का प्रचार
✅ छात्रों में विज्ञान और नवाचार की रुचि
✅ बच्चों को प्रेरित करना कि वे भविष्य में DRDO, ISRO या सेना में योगदान दें
📢 विधिक आवाज़ की विशेष टिप्पणी
यह पहल न केवल भारत की रक्षा शक्ति को सम्मान देने का प्रयास है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ी को यह समझाने का माध्यम भी है कि विज्ञान, तकनीक और देशभक्ति एक साथ कैसे चलते हैं।