क्या बुजुर्गों की आवाज उठाना अपराध बन चुका है?नीमच, मध्य प्रदेश – "मैं न्याय मांगने आया था, पर मुझे अपराधी बना दिया गया!" यह शब्द हैं 70 वर्षीय बुजुर्ग किसान जगदीश दास बैरागी के, जिन्हें प्रशासनिक तंत्र की बेरुखी का ऐसा सामना करना पड़ा जो हर लोकतांत्रिक नागरिक के अधिकारों पर सवाल खड़ा करता है।
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विश्रामित्र अग्निहोत्री, सह संपादक की विशेष रिपोर्ट
10 किलोमीटर पैदल, फिर 8 किलोमीटर बस से पहुंचे, फिर भी नहीं सुनी गई फरियाद
नीमच जिले के अड़मालिया गांव निवासी जगदीश दास बैरागी अपने जमीन के सीमांकन और बंटवारे के आदेश पर छह महीने से कार्रवाई नहीं होने से परेशान थे। हर मंगलवार को जनसुनवाई में जाकर अपनीफरियाद रखते, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। 19 मार्च को भी वे 10 किलोमीटर पैदल और 8 किलोमीटर बस से सफर कर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे। जब घंटों इंतजार के बाद भी बात नहीं बनी तो उन्होंने SDM संजीव साहू से अपनी पीड़ा थोड़ी ऊंची आवाज में व्यक्त कर दी।
SDM की जरा-सी नाराजगी और पुलिस एक्शन में आ गई!
इसके बाद अचानक कलेक्टर कार्यालय में बैठे अधिकारी सक्रिय हो गए। कुछ ही देर में कैंट थाने से दो पुलिसकर्मी आए और बुजुर्ग को जबरन बाइक पर बिठाकर थाने ले गए। वहां उन्हें 6 घंटे तक भूखा-प्यासा बैठाकर रखा गया। बिना किसी कानूनी आधार के हिरासत में लिए गए इस बुजुर्ग को न कोई सुनवाई दी गई और न ही उनकी शिकायत का निवारण किया गया।
क्या कहता है प्रशासन?
SDM संजीव साहू ने मीडिया से कहा, "बुजुर्ग की जमीन का मामला तहसीलदार देख रहे हैं, वह ज्यादा जोर-जोर से बोल रहे थे, इसलिए पुलिस को बुलाया गया था।" (सोर्स: आज तक)
कैंट थाने के अधिकारियों ने सफाई देते हुए कहा कि बुजुर्ग को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए थाने लाया गया था, लेकिन उन्हें कोई प्रताड़ना नहीं दी गई।
बुजुर्ग का दर्द: "क्या गरीब की आवाज उठाना गुनाह है?"
थाने से बाहर आने के बाद जगदीश बैरागी ने कहा, "मैं न्याय मांगने आया था, लेकिन मुझे ऐसा महसूस कराया गया जैसे मैं कोई बड़ा अपराधी हूं। क्या गरीब की आवाज उठाना अब अपराध बन चुका है?" (सोर्स: नवभारत टाइम्स)
कानूनी नजरिया: क्या यह कस्टोडियल टॉर्चर का मामला है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। किसी भी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से हिरासत में रखना और प्रताड़ित करना "कस्टोडियल टॉर्चर" की श्रेणी में आता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कई मामलों में यह स्पष्ट कर चुके हैं कि बिना किसी कानूनी आधार के हिरासत में लेना गैरकानूनी है। यह पुलिस की ज्यादती और प्रशासनिक तानाशाही को दर्शाता है।
प्रशासनिक संवेदनहीनता का प्रतीक बनी यह घटना!
यह घटना यह दर्शाती है कि कैसे एक सिस्टम गरीब और लाचार नागरिकों के लिए न्याय का गला घोंट रहा है। इस तरह की संवेदनहीनता आम नागरिकों में प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ा रही है।
न्याय की मांग और सुधार की जरूरत
इस घटना को देखते हुए मानवाधिकार आयोग और राज्य प्रशासन को इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। बुजुर्ग किसान जगदीश बैरागी को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या यह भारत की न्याय प्रणाली की असली तस्वीर है?
अगर एक बुजुर्ग को अपनी आवाज उठाने पर प्रताड़ित किया जा सकता है, तो सोचिए एक आम नागरिक के साथ क्या हो सकता है? यह समय है कि प्रशासन संवेदनशील बने और "न्याय" को सिर्फ कागजों तक सीमित न रखे।
विधिक आवाज़ इस घटना पर पूरी निगरानी बनाए रखेगा और आगे की कार्रवाई से आपको अवगत कराता रहेगा।
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पोस्ट बाय विश्वामित्र अग्निहोत्री ✍️✍️