इंदौर के मऊ गांव में छठ पूजा बड़े धूमधाम से मनाई गई। इस साल भी गांव के लोगों ने पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ इस पावन पर्व का आयोजन किया। गांव के तालाब के किनारे विशेष रूप से सजावट की गई थी, जहाँ श्रद्धालुओं ने संध्या और उषा अर्घ्य दिया। महिलाओं और पुरुषों ने पारंपरिक वेशभूषा में छठी मैया और सूर्य देव की आराधना की, और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।
पूरे महूं गांव में उत्सव का माहौल था, और व्रती पूरे नियम और श्रद्धा के साथ पूजा में लीन रहे। विशेष बात यह रही कि इस बार मऊ गांव में युवा पीढ़ी ने भी इस पारंपरिक त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
पूजा स्थल पर श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य दिया। उषा ठाकुर ने ग्रामीणों के साथ संवाद किया और इस तरह के धार्मिक आयोजनों में समाज की एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने पर बल दिया। उनके इस स्वागत ने वहां मौजूद सभी श्रद्धालुओं के मनोबल को बढ़ाया और पूजा के प्रति एक खास उत्साह देखा गया।
छठ पूजा भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का पर्व है। छठ पूजा में लोग अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करते हैं। इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें व्रत रखने वाले बिना अन्न और जल ग्रहण किए कठिन तपस्या करते हैं और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व अत्यधिक है। इस पर्व के दौरान लोग सूर्य देवता की आराधना करते हैं, जो जीवन के स्रोत और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। यह पूजा न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के लिए की जाती है, बल्कि समाज में एकजुटता और सामूहिकता को बढ़ावा देने के लिए भी महत्वपूर्ण है। छठ पूजा के समय लोग अपने परिवार और समाज के लोगों के साथ मिलकर पूजा की तैयारी करते हैं, जो सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को और भी मजबूत बनाता है।
छठ पूजा में छठी मैया की भी पूजा होती है, जो लोक संस्कृति में संतान और परिवार की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। इसलिए, इस पर्व को महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। महिलाएं छठी मैया से संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
छठ पूजा की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएं हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा यह है कि जब पांडवों ने अपना सारा राजपाट खो दिया था, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया और सूर्य देव से परिवार की समृद्धि की कामना की। सूर्य देव की कृपा से पांडवों को खोया हुआ राज्य वापस मिला।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर छठ व्रत का पालन किया था। उन्होंने सूर्य देव की उपासना कर राजसी जीवन में समृद्धि की प्रार्थना की थी। इसी समय से छठ पूजा का महत्त्व और भी बढ़ गया।
छठ पूजा की प्रक्रिया चार दिनों तक चलती है और इसमें कठोर नियमों का पालन किया जाता है। इस पर्व की शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है, जब व्रती स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं और अगले दिन से व्रत का प्रारंभ होता है। इसके बाद 'खरना' होता है, जिसमें व्रती दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और गुड़ से बनी सामग्रियों का सेवन करते हैं।
तीसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसे 'संध्या अर्घ्य' कहा जाता है। अर्घ्य अर्पित करने के लिए बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, नारियल और अन्य प्रसाद चढ़ाया जाता है। व्रती अपने परिवार के साथ मिलकर यह पूजा करते हैं, जो सामाजिक एकता का प्रतीक होती है।
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे 'उषा अर्घ्य' कहा जाता है। इस दिन की पूजा सबसे महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि सूर्य की पहली किरण को समर्पित यह अर्घ्य जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और सुख का प्रतीक माना जाता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है और व्रती पारण करके अपना उपवास तोड़ते हैं।
छठ पूजा की विशेषताएँ
छठ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे पूरी सादगी और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पूजा में कोई पुरोहित या पंडित आवश्यक नहीं होता; हर व्यक्ति स्वयं अपनी पूजा करता है। यह पर्व प्रकृति के साथ सामंजस्य और सौहार्द्र का प्रतीक है, जहां लोग नदियों, तालाबों और अन्य जलाशयों के किनारे पूजा करते हैं। छठ पूजा के प्रसाद में उपयोग होने वाली सामग्रियाँ भी प्राकृतिक होती हैं, जैसे गन्ना, नारियल, केला, ठेकुआ आदि।
इस पर्व में किसी प्रकार की दिखावा या आडंबर नहीं होता, और लोग केवल श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करते हैं। इस पर्व के दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है, और लोग अपने आस-पास के जलाशयों और नदियों की साफ-सफाई भी करते हैं।
पर्यावरणीय महत्त्व
छठ पूजा का एक पर्यावरणीय महत्त्व भी है। इस पूजा के दौरान जल के स्रोतों, विशेषकर नदियों और तालाबों की साफ-सफाई की जाती है। इसके माध्यम से लोग जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता को समझते हैं। इस पूजा में उपयोग होने वाले प्रसाद भी पूरी तरह से जैविक होते हैं, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाते। छठ पूजा हमें प्रकृति के साथ संतुलन और उसकी रक्षा का संदेश भी देती है।
आधुनिक समय में छठ पूजा
आज के आधुनिक युग में भी छठ पूजा की प्रासंगिकता बनी हुई है। यह त्यौहार केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के विभिन्न शहरी इलाकों और विदेशों में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। लोग जहाँ कहीं भी हों, अपने घरों से दूर रहकर भी इस पर्व को पूरे विधि-विधान से मनाते हैं।
वर्तमान समय में सरकार और सामाजिक संस्थाएँ भी इस पर्व के महत्त्व को देखते हुए विशेष तैयारियाँ करती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर छठ घाट बनाए जाते हैं और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरण संरक्षण, और पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत करता है। छठ पूजा में समर्पण, सादगी और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की भावना प्रमुख होती है, जो इसे विशेष बनाती है।
✔️Post by Soniya Rathore✍️✍️✍️
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सोनिया राठौर अग्निहोत्री प्रधान संपादक विधिक आवाज समाचार समूह |