बाजार में क्या होने वाला है! 1 लाख करोड़ निकाल चुके प्रमोटर्स, रेकॉर्ड कैश लेकर बैठे हैं वॉरेन बफे

 

नई दिल्ली: प्रमोटर्स इस साल अब तक करीब एक लाख करोड़ रुपये की बिकवाली कर चुके हैं। ETMarkets और प्राइम डेटाबेस द्वारा किए गए डेटा एनालिसिस से पता चला है कि 250 से अधिक कंपनियों के प्रमोटरों ने इस साल अब तक बल्क और ब्लॉक डील के जरिए लगभग 97,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बेची है। इस दौरान लिस्टेड कंपनियों के प्रमोटरों ने ऑफर फॉर सेल (OFS) रूट के जरिए भी हिस्सेदारी बेची है, जो 7,300 करोड़ रुपये के बराबर है। इसके अलावा हिंदुस्तान जिंक में लगभग 3,100 करोड़ रुपये के सौदे में 1.51% इक्विटी बेचने के लिए वेदांता OFS लाई थी। साथ ही दुनिया के दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे रेकॉर्ड कैश लेकर बैठे हैं। साल की दूसरी तिमाही में कंपनी के पास कैश, कैश इक्विवेलेंट्स और शॉर्ट टर्म ट्रेजरी 88 अरब डॉलर बढ़कर 277 अरब डॉलर के ऑल-टाइम लेवल पर पहुंच गया है। क्या यह इस बात का संकेत है कि स्टॉक मार्केट अपने चरम पर पहुंच चुके हैं?

ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन ने इंडस टावर्स में 15,300 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बेची है। यह भारतीय बाजार में इस साल किसी प्रमोटर द्वारा सबसे बड़ी हिस्सेदारी बिक्री है। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के को-फाउंडर राकेश गंगवाल सहित प्रमोटर्स ने 10,150 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। इसी तरह टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने टीसीएस के 9,300 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। साथ ही एम्फेसिस, वेदांता, भारती एयरटेल, व्हर्लपूल ऑफ इंडिया, संवर्धन मदरसन, हिंदुस्तान जिंक, सिप्ला, एनएचपीसी और टिमकेन इंडिया में भी बड़ी हिस्सेदारी बिक्री देखने को मिली है। अगर इसमें आईपीओ रूट के जरिए ओएफएस को भी शामिल किया जाए तो यह लिस्ट और लंबी हो जाएगी।

किस-किस कंपनी में बिकी हिस्सेदारी

ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको ने मार्च में आईटीसी में 3.5% हिस्सेदारी 17,400 करोड़ रुपये में बेची थी। सिगरेट से लेकर होटल बनाने वाली इस कंपनी का कोई प्रमोटर नहीं है। इसी तरह सॉफ्टबैंक ने भी पिछले महीने की शुरुआत में पेटीएम से अपना कारोबार समेट लिया था। प्रमोटर्स और फाउंडर्स ने कई कारणों से कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेची है। इनमें बिजनस बढ़ाने के लिए आवश्यक फंड से लेकर मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग, कर्ज में कमी और स्ट्रैटजिक रिस्ट्रक्चरिंग शामिल है। इंडिगो के मामले में राकेश गंगवाल ने कंपनी से अलग होने के कारण हिस्सेदारी बेची।

मेरिसिस मल्टीकैप पीएमएस के फंड मैनेजर (इक्विटीज) अक्षय बडजाते ने बताया कि पीई/वीसी फंड्स ने बाजार में तेजी का फायदा उठाते हुए लिस्टेड कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी पूरी तरह या आंशिक रूप से बेचकर बाहर निकलने का प्रयास किया है। घरेलू संस्थानों ने इस साल कुल मिलाकर 3.9 लाख करोड़ रुपये के इक्विटी खरीदे हैं। संस्थागत निवेशकों, म्यूचुअल फंड और रिटेल इनवेस्टर्स के मजबूत इनफ्लो से बड़ी हिस्सेदारी की बिक्री के लिए अनुकूल माहौल बना हुआ है। शेयर.मार्केट के सीआईओ सुजीत मोदी ने कहा कि बाजार में लिक्विडिटी में ग्रोथ का फायदा उठाते हुए प्रमोटर्स ने हिस्सेदारी बेची है।

तो क्या बाजार की तेजी चरम पर है?

मोदी ने कहा कि भारतीय बाजारों में तेजी का माहौल है। इस कारण मार्केट हाई वैल्यूएशन पर कारोबार कर रहे हैं। प्रमोटर इसे अपने होल्डिंग्स को भुनाने का एक उपयुक्त समय मानते हैं। तेजी के बाजारों में वैल्यूएशन अक्सर चरम पर होता है और प्रमोटर किसी भी संभावित करेक्शन से पहले फायदा उठा लेना चाहते हैं। बाजार को लंबे समय तक इस स्तर पर नहीं रखा जा सकता है। यही वजह है कि प्रमोटर मौके का फायदा उठा रहे हैं। हालांकि एनालिस्ट का कहना है कि कुछ शेयरों में जहां हाल ही में OFS या ब्लॉक हुए हैं, उनकी वर्तमान कीमत OFS या ब्लॉक डील कीमत से अधिक है। उदाहरण के लिए प्रमोटर की बिक्री के बाद व्हर्लपूल और इंडस टावर्स दोनों 30% से 90% तक बढ़ गए हैं।

अरिहंत कैपिटल मार्केट्स की फाउंडर और इंस्टीट्यूशनल ब्रोकिंग की प्रमुख अनीता गांधी कहती हैं कि जिन कंपनियों ने OFS या ब्लॉक रूट के जरिए एंट्री मारी है, उन सभी कंपनियों ने अपने पुराने शेयरहोल्डर्स के लिए अच्छा प्रदर्शन किया है। साथ ही नए शेयरधारकों को भी अच्छा रिटर्न दिया है। इस दृष्टिकोण से यह विक्रेता और खरीदार दोनों के लिए फायदेमंद स्थिति है क्योंकि बड़े सौदे एक ही कीमत पर होते हैं। हालांकि बाजार में लिक्विडिटी ने निश्चित रूप से इसमें मदद की है, लेकिन इसने कई प्रमोटरों को बेहतर कीमत पर फंड जुटाने में मदद की है।

उन्होंने कहा कि बाजार के उच्चतम स्तर वैल्यूएशन और भविष्य की विकास क्षमता से तय होते हैं, इसलिए प्रमोटरों का पलायन बाजार के चरम पर पहुंचने का संकेत नहीं है। हिस्सेदारी बिक्री के सभी फैसले गिरावट के दृष्टिकोण से प्रेरित नहीं होते हैं। कुछ लोग केवल अवसरवादी हो सकते हैं, जो मौजूदा लिक्विडिटी और वैल्यूएशन का लाभ उठाकर अपने कारोबार को लॉन्ग टर्म दृष्टिकोण से आगे बढ़ा सकते हैं।
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