लखनऊ।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से न्याय व्यवस्था का एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सामने आया है, जिसने फर्जी मुकदमे लिखवाने वालों को बड़ा सबक सिखा दिया है। अदालत ने एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक झूठे केस में वकील परमानंद गुप्ता को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास और 3 लाख रुपये का जुर्माना सुनाया।
यह पूरा मामला एक महिला पूजा रावत के नाम पर दर्ज फर्जी एफआईआर से जुड़ा था। जांच के दौरान सामने आया कि पूजा रावत उस स्थान पर कभी गई ही नहीं थी, जहां घटना दर्ज दिखाई गई थी। अदालत ने उन्हें निर्दोष करार देते हुए साफ कहा कि यह मुकदमा पूरी तरह से मनगढ़ंत और झूठा था।
इस केस में निर्णायक भूमिका निभाई एसीपी राधारमण सिंह ने। उन्होंने मामले की गहराई से जांच कर सच को बेनकाब कर दिया। उनकी निष्पक्षता और ईमानदार जांच से सच्चाई सामने आई, जिसे देखकर अदालत ने भी उनकी सराहना की।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “फर्जी मुकदमे लिखवाना न केवल कानून का दुरुपयोग है बल्कि यह समाज और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए खतरनाक है।” अदालत का यह फैसला उन सभी के लिए सख्त चेतावनी है, जो अपनी सुविधा के लिए कानून को हथियार बनाने की कोशिश करते हैं।
यह निर्णय इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कानून भले ही अंधा कहा जाता है, लेकिन वह इतना भी अंधा नहीं कि झूठ और फरेब को सच मान ले।
रिपोर्ट – राजेश कुमार यादव