"पिता आईजी, बेटी वकील — हाईकोर्ट में हुई न्याय की ऐतिहासिक जंग"


वकील बेटी ने दी आईजी पिता को कानूनी मात, हाईकोर्ट ने सिपाही की बहाली के दिए आदेश

प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
न्याय के पथ पर जब संवेदनाएं और रिश्ते आमने-सामने आते हैं, तो असली कसौटी परख में आती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में ऐसा ही एक अद्वितीय मामला सामने आया, जब एक वकील बेटी ने अपने ही पिता — जो उत्तर प्रदेश पुलिस में आईजी पद पर कार्यरत हैं — द्वारा जारी सिपाही की सेवा समाप्ति के आदेश को अदालत में चुनौती दी और रद्द भी करवा दिया।

क्या था मामला
संबंधित सिपाही को बिना विभागीय जांच और बिना सुनवाई का अवसर दिए अचानक सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। यह आदेश आईजी स्तर के अधिकारी ने पारित किया। आदेश की कानूनी खामियों को देखते हुए, सिपाही की ओर से वकील बेटी ने याचिका दायर की — और वह अधिकारी उनके पिता निकले।

अदालत में दलीलें
याचिकाकर्ता ने स्पष्ट तर्क दिया कि यह आदेश न केवल नियम विरुद्ध है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है। किसी भी कर्मचारी को सेवा से हटाने से पहले सुनवाई और विभागीय जांच अनिवार्य है, जो इस मामले में पूरी तरह नजरअंदाज की गई।

हाईकोर्ट का सख्त रुख
मामले की गंभीरता देखते हुए, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आदेश का बारीकी से परीक्षण किया। अदालत ने पाया कि सेवा समाप्ति की पूरी प्रक्रिया में “न्याय का पालन नहीं” किया गया। नतीजतन, कोर्ट ने आदेश को निरस्त करते हुए सिपाही को तुरंत सेवा में बहाल करने के निर्देश दिए। साथ ही यह टिप्पणी भी की कि “कोई भी अधिकारी, चाहे कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, उसे संविधान और नियमों के अधीन ही कार्य करना होगा।”

समाज के लिए मिसाल
इस फैसले ने सिद्ध किया कि न्याय की नजर में न रिश्तों का दबाव चलता है, न पद की ताकत। वकील बेटी ने पेशेवर तटस्थता और साहस का परिचय देकर यह संदेश दिया कि जब संविधान बोलता है, तो निजी संबंध पीछे छूट जाते हैं।

रिपोर्ट राजेश कुमार यादव 
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