बेटे को खोया, हजारों की जान बचाई: माँ विमला की मिसाल


2006 में आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गाँव, उंदुरु में एक दर्दनाक हादसा हुआ। बाइक से घर लौटते समय, 20 साल के होनहार युवक, सुधीक्षण को एक तेज़ रफ्तार ट्रक ने टक्कर मार दी। वह बच सकता था, अगर उसे समय पर First-Aid मिल जाता; या कोई उसकी मदद कर सकता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

विधिक आवाज समाचार |आंध्रप्रदेश
राजेश कुमार यादव की कलम से 
दिनांक 14 मई 2025

बेटे के निधन के बाद सुधीक्षण की माँ, चिगुरुपाटी विमला पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, उनका दिल बुरी तरह टूट गया। जीने की प्रेरणा ही जैसे ख़त्म हो गई थी; लेकिन उस माँ ने फिर भी हार नहीं मानी।

घटना से सिर्फ़ 10 दिनों बाद, उन्होंने बेटे की याद में एक संकल्प लिया और ‘सुधीक्षण फाउंडेशन’ की शुरुआत की।

उनका मकसद था लोगों को सड़क सुरक्षा के लिए जागरूक करना, हादसे में घायल लोगों को तुरंत इलाज देना और उन लोगों की मदद करना जो एक्सीडेंट में अपने हाथ या पैर खो चुके हैं।

एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से आने वालीं चिगुरुपाटी विमला पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पोस्टग्रैजुएट और एक शिक्षका हैं, जो 1982 से 2007 तक गाँव के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देती रहीं।

उनकी संस्था अब तक 5000 से ज़्यादा लोगों को मुफ़्त में Wheelchairs और Prosthetic Limbs उपलब्ध करा चुकी है। साथ ही, वह गाँव-गाँव जाकर लोगों को फर्स्ट-एड ट्रेनिंग भी देती हैं।

इसके अलावा, वह Single Mothers को अलग-अलग स्किल्स सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।

उनकी बेटी श्रीमुखी, जो अमेरिका में रहती हैं, इस काम में उनका साथ दे रही हैं। वह 100 से ज़्यादा NRIs को इस मुहिम से जोड़ चुकी हैं।

सबसे खूबसूरत बात यह कि ये कि विमला बिना किसी दिखावे के, पूरी सेवा भावना से अपना काम कर रही हैं। वह कहती हैं- "मैं अपने बेटे को नहीं बचा पाई... लेकिन अगर किसी और माँ का बच्चा बच जाए, तो यही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है।

:sparkles: कहते हैं माँ से शक्तिशाली कोई नहीं; और यह कहानी यही साबित करती है। विमला हमें ये सिखाती हैं कि दर्द को ताक़त में बदल दिया जाए, तो कई ज़िंदगियाँ सुधर जाती हैं।


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