इंदौर नगर निगम के बजट सत्र के दौरान उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब कुछ मुस्लिम महिला पार्षदों ने शुक्रवार को लंच ब्रेक के दौरान निगम परिसर में नमाज अदा की। इस घटना को लेकर नगर निगम प्रशासन से लेकर राजनीतिक गलियारों तक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
इंदौर, विधिक आवाज़ न्यूज। विश्वामित्र अग्निहोत्री
महापौर पुष्यमित्र भार्गव और सभापति मुन्नालाल यादव ने इस कृत्य पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि लंच ब्रेक के दौरान केवल भोजन के लिए अवकाश घोषित किया गया था, न कि किसी धार्मिक गतिविधि की अनुमति दी गई थी। महापौर ने कहा कि "यदि किसी को नमाज अदा करनी थी, तो उसके लिए निगम परिसर के बाहर का स्थान उपयुक्त होता।"
'फांसी पर लटका दो, अगर इतना बड़ा गुनाह है' - रुबीना इकबाल खान
विवाद के बाद कांग्रेस पार्षद रुबीना इकबाल खान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "हर बार मुसलमानों को टारगेट किया जाता है। अगर नमाज पढ़ना इतना बड़ा अपराध है, तो फांसी पर लटका दो।"
उन्होंने आरोप लगाया कि महापौर और सभापति को उन्होंने पहले ही इशारे से सूचित कर दिया था कि वह नमाज पढ़ने जा रही हैं, लेकिन उस समय किसी ने आपत्ति नहीं जताई। "अगर जमीन 'अपवित्र' हो जाती तो वहीं कह देते। ये लोग बड़े पदों पर रहकर भी झूठ बोलते हैं," उन्होंने आरोप लगाया।
'सांप्रदायिक सौहार्द को ठेस पहुंचाने की कोशिश'रुबीना खान ने आगे कहा कि वह पिछले 12 वर्षों से नगर निगम की सदस्य हैं और पहले भी कई बार वहां नमाज अदा कर चुकी हैं। "यह इंदौर है, जहां सभी धर्मों को समान सम्मान मिलता है। हम गणेश चतुर्थी, गरबा जैसे आयोजनों में भी पूरे उत्साह से भाग लेते हैं। फिर हमारी नमाज से इतनी आपत्ति क्यों?"
सवाल उठते हैं - क्या धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध उचित है?
यह घटना एक बड़े सवाल को जन्म देती है – क्या लोकतांत्रिक संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता का स्थान नहीं है? क्या हर धार्मिक अभिव्यक्ति पर राजनीतिक चश्मा लगाया जाएगा?
विधिक दृष्टिकोण क्या कहता है?
कानूनी जानकारों का कहना है कि सरकारी परिसरों में धार्मिक गतिविधियों को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। लेकिन यदि कोई शांति और अनुशासन के साथ व्यक्तिगत रूप से धार्मिक कृत्य करता है और वह किसी को बाधित नहीं करता, तो उस पर सख्त आपत्ति सवाल खड़े करती है।
विधिक आवाज़ का निष्पक्ष मत
विवाद के केंद्र में चाहे राजनीति हो या प्रशासनिक सख्ती, लेकिन यह स्पष्ट है कि ऐसी घटनाएं समाज में धार्मिक असहिष्णुता का संकेत देती हैं। लोकतंत्र में हर नागरिक को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए, फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या विचारधारा से जुड़ा हो।
रिपोर्ट: विधिक आवाज़ न्यूज़ नेटवर्क
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