हैदराबाद, जो कभी दक्षिण भारत का हरा गहना कहलाता था, आज वहाँ पर सिर्फ मशीनों की गर्जना, ट्रकों की धूल और उजाड़ जमीनें बची हैं। जंगलों की जड़ों को उखाड़ कर जिस ‘विकास’ की इमारत बनाई जा रही है, वह सिर्फ और सिर्फ लालच की नींव पर खड़ी है।
रिपोर्ट: विधिक आवाज़ समाचार | विशेष रिपोर्ट |
✍️✍️पोस्ट बाय विश्वामित्र अग्निहोत्री
निडर और बैकोफ पत्रकारिता | 7 अप्रैल 2025
क्या हम इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि हरे पेड़ों की कराह भी अब हमें विचलित नहीं करती?
सरकार के दावों में सच्चाई कम, कारोबार ज़्यादा
तेलंगाना सरकार दावा करती है कि वो ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट’ और ‘स्मार्ट सिटी’ प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। लेकिन इसका दूसरा नाम है— जंगलों का जनाज़ा।
गाची बोवली, कांचा और बाहरी हैदराबाद के कई क्षेत्रों में हज़ारों पेड़ काटे जा चुके हैं। जैव विविधता खत्म हो रही है, पक्षी पलायन कर चुके हैं, और कई जानवरों की मौत की खबरें सामने आ चुकी हैं।
और पर्यावरण की रक्षा करने वाले एनजीओ...?
जब सवाल सरकार पर उठता है, तो जिम्मेदारी का दूसरा हिस्सा उन नामी-गिरामी NGO और फाउंडेशन पर भी आता है, जो ‘प्राकृतिक संतुलन’ की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं:
ATREE (Ashoka Trust for Research in Ecology and the Environment)
- EFI (Environmentalist Foundation of India)
- WTI (Wildlife Trust of India)
- SankalpTaru Foundation
- Nature Conservation Foundation
- WPSI (Wildlife Protection Society of India)
- Chintan Environmental Research and Action Group
- Kalpavriksh
- Vanashakti
- IUCN India
- Greenpeace India
इन सभी संस्थाओं को करोड़ों के फंड मिलते हैं—भारत और विदेश दोनों से। इनके पास वकील, रिसर्चर, टेक्नोलॉजी और संसाधन हैं। लेकिन हैदराबाद की इस पर्यावरणीय हत्या पर इनका मौन हैरान कर देने वाला है। आखिर ये लोग कहाँ हैं जब असली लड़ाई ज़मीन पर लड़ी जा रही है?
पेड़ काटे जा रहे हैं, जानवर मर रहे हैं – क्या यही विकास है? हर कटते पेड़ के साथ न केवल ऑक्सीजन का स्रोत खत्म होता है, बल्कि वह एक इकोसिस्टम का अंत होता है। एक वृक्ष अपने जीवनकाल में 26000 किलो तक ऑक्सीजन देता है। उसे काटना सिर्फ लकड़ी का नुकसान नहीं है, बल्कि वो मानवता का गला घोंटना है।
“विकास” की आड़ में विनाश की गाथा
सरकार कहती है कि वो पेड़ों की जगह नए पौधे लगाएगी। लेकिन कोई उनसे पूछे—क्या आप एक 40 साल पुराने पेड़ के बदले 4 इंच का पौधा लगाकर खुद को माफ कर सकते हैं?
पेड़ सिर्फ छाया या ऑक्सीजन ही नहीं देता—वो एक घर होता है सैकड़ों जीवों का। उसकी जड़ें मिट्टी पकड़ती हैं, उसकी शाखाएं जीवन फैलाती हैं।
क्या हमें अब उठ खड़ा नहीं होना चाहिए?
अगर आज आपने आवाज़ नहीं उठाई, तो कल आपके बच्चों को ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ स्कूल भेजना पड़ेगा। अगर आज आपने अपने जंगलों की रक्षा नहीं की, तो कल आप खुद पानी के लिए लाइन में खड़े होंगे।
- जंगल कटाई पर तुरंत रोक लगाई जाए।
- जिन इलाकों में कटाई हो चुकी है, वहाँ वृक्षारोपण की उच्च निगरानी के तहत योजना बनाई जाए।
- सभी NGO को अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी—मौन रहना अब अपराध है।
- वन्यजीवों के लिए सुरक्षित जोन बनाया जाए और उनकी देखरेख सुनिश्चित की जाए।
- जन जागरूकता के लिए सरकार को अभियान चलाना चाहिए, न कि उसे कुचलना।
- अब या कभी नहीं!
आज अगर आपने अपनी आंखें बंद रखीं, तो आने वाली पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी। जंगल सिर्फ लकड़ी नहीं, वो जीवन हैं। वो ऑक्सीजन हैं। वो हमारी सभ्यता के असली आधार हैं। और यदि वो खत्म हो गए—तो हम भी खत्म हो जाएंगे।
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