इंदौर के चर्चित टैंकर कांड में नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे की गिरफ्तारी के बाद सियासत के साथ-साथ पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। अब ये मामला सिर्फ एक मारपीट की घटना नहीं, बल्कि पुलिस की निष्पक्षता और राजनीतिक हस्तक्षेप का मुद्दा बन गया है।
विधिक आवाज़ न्यूज़ | इंदौर
विश्वामित्र अग्निहोत्री की खास रिपोर्ट (सह संपादक)
एफआईआर के मुताबिक, घटना 19 अप्रैल की रात 9:30 बजे हुई, लेकिन उसी समय चिंटू चौकसे विजय नगर क्षेत्र में ब्लॉक अध्यक्ष गब्बर द्वारा आयोजित भंडारे में मौजूद थे। इस भंडारे का सीसीटीवी फुटेज और वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें चिंटू चौकसे स्पष्ट रूप से उपस्थित नजर आ रहे हैं, वहीं वायरल हुई घटना की वीडियो फुटेज में चिंटू कहीं नजर नहीं आ रहे, जिससे यह सवाल उठता है कि अगर वो मौके पर थे ही नहीं, तो उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर क्यों दर्ज की गई?
धारा 109: आपराधिक साजिशधारा 296: सार्वजनिक उपद्रवधारा 351 (2): जानलेवा हमलाधारा 333: सरकारी कार्य में बाधा पहुंचानाधारा 324 (4): हथियार से हमलाधारा 191 (3): धमकी देनाधारा 190: घर में घुसकर हमलाधारा 115 (2): जान से मारने की धमकी
इन धाराओं में चिंटू चौकसे, उनके बेटे ईशान, भाई राधेश्याम, गौरव चौधरी, रोहन चौकसे, सुभाष यादव, रवि प्रजापत व अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।
जबकि चौकसे परिवार का कहना है कि उस वक्त चिंटू घर पर थे ही नहीं, और उनका बेटा ईशान और भतीजा रोहन गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं। बावजूद इसके, पुलिस ने क्रॉस एफआईआर में पाठक परिवार पर कोई सख्त धाराएं नहीं लगाईं, जिससे साफ होता है कि कार्रवाई एकतरफा और पक्षपातपूर्ण है।
चिंटू चौकसे के पक्ष में आए कांग्रेस प्रवक्ता किशोर डोंगरे ने वीडियो व एफआईआर कॉपी जारी कर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पूरी तरह से राजनीतिक दबाव में की गई कार्रवाई है। वहीं भाजपा नेता सुमित मिश्रा ने न सिर्फ पुलिस की तारीफ की बल्कि चिंटू को "आदतन अपराधी" कहकर पूर्वधारणा भी बना दी।
अब सवाल यह है कि जब घटनास्थल पर मौजूदगी ही साबित नहीं होती, तो क्या चिंटू चौकसे को सिर्फ राजनीतिक बदले की भावना से निशाना बनाया गया है?
यह मामला अब न्याय और निष्पक्षता की परीक्षा बन गया है।