आज 14 अप्रैल है। कोई सामान्य तारीख नहीं... बल्कि एक क्रांति का जनमदिन है। वो क्रांति जो कलम से लड़ी गई, संविधान से जीती गई और समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े इंसान को उसकी असली पहचान दिला गई।
सह-संपादक एवं दबंग पत्रकार | विधिक आवाज़ समाचार , संपर्क: +91 8827444598
भीमराव अंबेडकर — एक नाम नहीं, एक संकल्प है। वो लौ है जिसने सदियों की अंधेरी सामाजिक बेड़ियों को जला डाला। वो आवाज़ है जिसने कहा – “हम भी इंसान हैं, हमें भी बराबरी चाहिए।”
एक बच्चे की कहानी जो भूखा सोया... लेकिन कभी झुका नहीं!
अंबेडकर का बचपन संघर्षों में डूबा था। स्कूल में बैठने की जगह नहीं, पानी पीने के लिए अपना गिलास तक नहीं। लेकिन उस अपमान ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि उन्हें गढ़ा – एक ‘भीम’ की तरह, जो सामाजिक भेदभाव को ललकार सके।
वे कहते थे – “ज्ञान ही शक्ति है।” और इसी ज्ञान को हथियार बनाकर उन्होंने दुनिया को दिखाया कि अगर इरादा बुलंद हो तो मिट्टी का भी इंसान इतिहास लिख सकता है।
संविधान निर्माता या समाज निर्माता?
भारत का संविधान सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं है, वो हर उस गरीब, दलित, महिला, मज़दूर, किसान और अल्पसंख्यक की ढाल है, जिसे सदियों से कुचला गया। भीमराव अंबेडकर ने संविधान में सिर्फ कानून नहीं डाले, उन्होंने इंसानियत की आत्मा डाली।
आज के भारत में बाबा साहेब की ज़रूरत और भी ज्यादा है...
आज जब जात-पात के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है, जब शिक्षा और अवसर फिर से वर्गों में बंटने लगे हैं, तब बाबा साहेब की सोच, उनके विचार और उनके बताए रास्ते को अपनाने की सबसे ज्यादा जरूरत है।
भीम अमर रहें, जब तक अन्याय जिंदा है!
डॉ. अंबेडकर ने कहा था – "मैं उस धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।" यही धर्म आज के भारत को अपनाना होगा।
आज की इस पावन जयंती पर विधिक आवाज़ समाचार और मैं, विश्वामित्र अग्निहोत्री, बाबा साहेब को कोटिशः नमन करता हूँ। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कोई भी लड़ाई छोटी नहीं होती, अगर इरादा बड़ा हो।
"जय भीम।
जय संविधान।
जय भारत।"