गोरखपुर जिले में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह स्थल भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथा का भी साक्षी रहा है। नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं और यहां हर दिन मेले जैसा माहौल बना रहता है।
रिपोर्ट: राजेश कुमार यादव | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
दिनांक: 31 मार्च 2025
गोरखपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर चौरी चौरा तहसील में स्थित यह प्राचीन मंदिर ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। हर साल चैत्र रामनवमी और शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां एक माह तक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर से श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं।
1857 की क्रांति और स्वतंत्रता संग्राम का गवाह है यह मंदिर
तरकुलहा देवी मंदिर को 1857 की क्रांति और अमर शहीद बंधू सिंह के बलिदान से जोड़कर देखा जाता है। क्रांतिकारी बंधू सिंह इस क्षेत्र के घने जंगलों में छिपकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे। वे अंग्रेजी हुकूमत के सैनिकों को पकड़कर उनका सिर मां भगवती के चरणों में अर्पित कर देते थे। उनकी इस गतिविधि से अंग्रेज बौखला गए और एक मुखबिर की सूचना पर उन्होंने बंधू सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
7 बार टला फांसी का फंदा, 8वीं बार मिली शहादत
बंधू सिंह को गोरखपुर के अलीनगर चौक पर फांसी की सजा दी गई। लेकिन जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया तो सात बार फांसी का फंदा टूट गया। इसे देखकर अंग्रेज अधिकारी भी हैरान रह गए।
आखिरकार, बंधू सिंह ने मां भगवती का आह्वान करते हुए स्वयं को उनके चरणों में समर्पित करने की प्रार्थना की। इसके बाद आठवीं बार में फांसी दी गई, और इस बार वह सफल रही। जैसे ही बंधू सिंह ने प्राण त्यागे, उसी समय तरकुलहा मंदिर के पास स्थित तरकुल का पेड़ अचानक गिर गया और उससे रक्तस्राव होने लगा। रक्त की बूंदें वहां स्थित मां भगवती की पिंडी पर गिरीं। इस घटना के बाद यह स्थान तरकुलही माई के नाम से विख्यात हो गया और तब से श्रद्धालुओं की आस्था यहां अटूट बनी हुई है।
योगी सरकार ने दी शक्तिपीठ की मान्यता, हो रहा भव्य विकास
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ऐतिहासिक स्थल को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दी है और इसके विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। मंदिर परिसर में शहीद स्मारक, धर्मशाला, विश्रामालय और तालाब का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है।
बात केवल मंदिर तक ही सीमित नहीं है, सरकार ने शहीद बंधू सिंह की याद में डाक टिकट भी जारी किया है। यहां न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार, नेपाल और आसपास के जिलों से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
आज भी जीवंत है बलि प्रथा
तरकुलहा देवी मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां अब भी बलि प्रथा प्रचलित है। नवरात्रि के दौरान हर साल बकरों की बलि दी जाती है। मान्यता है कि मां तरकुलही सभी संकटों को हर लेती हैं, इसलिए श्रद्धालु यहां आकर मन्नत मांगते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास
मंदिर के पुजारी दिनेश तिवारी और अन्य श्रद्धालु बताते हैं कि जो भी व्यक्ति मां तरकुलही के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि नवरात्र के नौ दिनों में यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं और लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है।