"बेटी की चीखें सुनकर भी खामोश रही दुनिया, 22 साल तक पिता की दरिंदगी का शिकार बनी बेटी"


समाज में पिता को बेटी का रक्षक माना जाता है, लेकिन जब वही पिता भक्षक बन जाए, तो इंसानियत शर्मसार हो जाती है। रोपड़ से आई यह खबर समाज के चेहरे पर पड़ा वो नकाब उतार देती है, जिसके पीछे कई सिसकियां दबकर रह जाती हैं।

विधिक आवाज समाचार | सपड़ (पंजाब) 
राजेश कुमार यादव | 8 मार्च 2025

22 साल तक घुट-घुटकर जीती रही बेटी
यह कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि एक जिंदा हकीकत है। एक युवती 22 साल तक अपने ही पिता की दरिंदगी का शिकार बनती रही।
बचपन में जिसे गुड़ियों से खेलना चाहिए था, उसकी मासूमियत रोज कुचली जा रही थी।

सच तब सामने आया जब अस्पताल पहुंची बेटी
पीड़िता को जब स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत हुई, तो वह अस्पताल पहुंची।

जांच में डॉक्टरों ने उसे गर्भवती पाया।

यह जानकर अस्पताल प्रशासन हैरान रह गया।
मामला पुलिस तक पहुंचा, और जब जांच हुई, तो सच्चाई के नाम पर जो सामने आया, वह झकझोर देने वाला था।

मां बेबस थी, पर खामोश क्यों रही?

जांच में पता चला कि मां को इस घिनौने खेल की जानकारी थी, लेकिन वह चुप रही।
यह चुप्पी क्या किसी मजबूरी का परिणाम थी या समाज की बनाई दीवारों का असर?
क्यों एक मां अपनी बेटी की आबरू लुटते देखती रही और कुछ नहीं कर पाई?

10 साल की उम्र से शुरू हुआ अत्याचार

पीड़िता ने बताया कि जब वह 10 साल की थी, तभी से उसका पिता उसकी अस्मिता को रौंदता आ रहा था।
बचपन बीतता गया, दर्द बढ़ता गया, लेकिन किसी ने नहीं सुना।
क्या समाज की खामोशी ही ऐसे दरिंदों को बढ़ावा देती है?

अब सवाल समाज से है:

1️⃣ अगर अस्पताल न जाता तो यह मामला सामने आता भी या नहीं?
2️⃣ क्या हमारे आसपास भी कोई ऐसी लड़की खामोश दर्द सह रही है?
3️⃣ क्या हम अब भी चुप रहेंगे या समाज में बदलाव की शुरुआत करेंगे?

विधिक आवाज़ की अपील:

✅ ऐसे मामलों की समयबद्ध सुनवाई हो
✅ पीड़िता को सुरक्षा व पुनर्वास मिले
✅ समाज इस पर चुप्पी तोड़े, बेटियों की आवाज बने

यह खबर एक चेतावनी है—अगर आज हमने आंखें मूंद लीं, तो कल हमारी चुप्पी किसी और बेटी की चीखों में बदल सकती है।


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