दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी शिकस्त के बाद वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूरी बना ली थी। इसके बाद उनके बारे में कई तरह के सवाल खड़ने होने लगे थे। कुछ दिनों तक उनका फोन भी बंद था। इससे उनकी गैरमौजूदगी को लेकर चर्चा और भी तेज हो गई। अब उन्होंने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से विपश्यना केंद्र में थे।
विधिक आवाज समाचार | नई दिल्ली |
रिपोर्ट राजेश कुमार यादव | 8 मार्च 2025
दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा, ‘पिछले 11 दिन से राजस्थान के एक गांव में विपश्यना ध्यान शिविर में था। मौन, एकांत, और अपने ही अंतर्मन का अवलोकन। फोन भी बंद था, बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ। आज सुबह ही शिविर पूरा हुआ। विपश्यना सिर्फ ध्यान नहीं, एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। दिन में 12 घंटे केवल अपनी सांसों को देखना, बिना किसी प्रतिक्रिया के बस अपने मन और शरीर को समझना। गौतम बुद्ध की वही सीख— चीजों को वैसे ही देखना, जैसी वे वास्तव में हैं, न कि जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं।’
इस यात्रा में कोई संवाद नहीं- मनीष सिसोदिया:
मनीष सिसोदिया ने आगे कहा, ‘इस यात्रा में कोई संवाद नहीं। न फोन, न किताबें, न लेखन, न ही किसी से नजरों का सामना। पहले कुछ दिन दिमाग भागता है, बेचैन होता है, लेकिन धीरे-धीरे समय ठहरने लगता है। एक अजीब-सी शांति हर हलचल के बीच जन्म लेने लगती है। सबसे दिलचस्प बात यह लगी कि शिविर में 75 फीसदी लोग 20-35 साल की उम्र के थे। जब आखिरी दिन बातचीत की, तो पता चला कि सफलता की दौड़ थकान, उलझती जिंदगियां और भीतर की बेचैनी उन्हें इतनी कम उम्र में ही इस राह पर ले आई है।’
आज शाम तक दिल्ली लौटूंगा- मनीष सिसोदिया:
आप नेता ने कहा, ‘उनकी शिकायत थी कि जिस शिक्षा ने उन्हें सफलता की इस दौड़ के लायक बनाया है उसमें इस थकान और इन उलझनों से निपटने का मंत्र भी सिखा दिया जाता तो हर पढ़े लिखे इंसान की जिंदगी कितनी खुशहाल भी हो सकती है। मुझे खुशी है कि दिल्ली का शिक्षा मंत्री रहते हुए स्कूलों मे हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत रोजाना हर बच्चे के लिए हैप्पीनेस क्लास शुरू करा सका।
यह शिक्षा के मानवीयकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है जिसका जिक्र विपश्यना ध्यान में दस दिन बिताने के बाद के बाद ये युवा कर रहे थे। आज शाम तक दिल्ली लौटूंगा, नई ऊर्जा और नए जोश के साथ।’ ‘जब दिल्ली में मुमकिन तो यहां पर क्यों नहीं?’