एमपी में नाश्ता, बिहार में लंच और असम में डिनर, पीएम नरेंद्र मोदी की एनर्जी देख दंग हो गई दुनिया


नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 घंटे देश सेवा में लगे रहते हैं. ऐसा एक बार फिर सभी को देखने को मिला. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ही दिन में 3 प्रदेशों का दौरा किया. पीएम मोदी ने सबसे पहले मध्यप्रदेश के भोपाल में इन्वेस्टमेंट समिट का शुभारंभ किया. इससे राज्य में निवेश के नए द्वार खुलेंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने को कहा कि मजबूत प्रतिभाओं तथा फलते-फूलते उद्योगों के साथ मध्यप्रदेश एक पसंदीदा व्यापार स्थल बन रहा है और राज्य में निवेश करने का यह सही समय है.

विधिक आवाज समाचार | नयी दिल्ली
रिपोर्ट राजेश कुमार यादव | दिनांक 26/2/2025

इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी बिहार के भागलपुर पहुंचे और बिहार से देश भर के अन्नदाताओं को उनके खातों में पीएम किसान के तहत सीधा लाभ दिया. पीएम मोदी ने यहां पर कहा कि बीते वर्षों में सरकार के प्रयासों से भारत का कृषि निर्यात बहुत अधिक बढ़ा है. इससे किसानों को उनकी उपज की ज्यादा कीमत मिलने लगी है. कई कृषि उत्पाद ऐसे हैं, जिनका पहली बार निर्यात शुरू हुआ है. अब बारी बिहार के मखाने की है. ये सुपर फूड है, जिसे अब दुनिया के बाजारों तक पहुंचाना है. इसलिए इस वर्ष के बजट में मखाना किसानों के लिए मखाना बोर्ड बनाने का ऐलान किया गया है.

किसानों के विकास के लिए तत्पर
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरा तो सपना है, दुनिया की हर रसोई में भारत के किसान का उगाया कोई न कोई उत्पाद होना ही चाहिए. इस वर्ष के बजट ने भी इसी विजन को आगे बढ़ाया है. बजट में ‘पीएम धन धान्य योजना’ की घोषणा की गई है. इसके तहत देश के 100 ऐसे जिलों की पहचान की जाएगी, जहां सबसे कम फसल उत्पादन होता है. फिर ऐसे जिलों में खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा.

असमी भाषा को दिया सम्मान
इसके बाद पीएम मोदी असम की राजधानी गुवाहाटी पहुंचे. असम में पीएम का भव्य स्वागत हुआ. साथ ही वो रिकॉर्ड 9000 कलाकारों द्वारा झुमोर बिनंदिनी नृत्य प्रदर्शन के साक्षी बने. इस मौके पर उन्होंने स्थानीय आदिवासियों का ढोल भी बजाया. इस मौके पर भी पीएम मोदी ने कहा कि मैं असम के काजीरंगा में रुकने वाला, दुनिया को उसकी जैव विविधता के बारे में बताने वाला पहला प्रधानमंत्री हूं. हमने कुछ ही महीने पहले असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा भी दिया है. असम के लोग अपनी भाषा के इस सम्मान का इंतजार दशकों से कर रहे थे.
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