देशभर में सहकारी संस्थाएं किसानों की मदद और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए स्थापित की गई थीं, लेकिन हाल के वर्षों में इन संस्थाओं में घोटालों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। कृषि सहकारिता साख संस्थाएं, जो किसानों को सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थीं, अब भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का अड्डा बनती जा रही हैं।
- क्या सहकारी संस्थाएं किसानों के लिए वरदान या अभिशाप बन गई हैं?
- करोड़ों के घोटालों ने किसानों की मेहनत पर फेरा पानी।
- क्या सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता संभव है?
- सहकारी संस्थाओं में घोटाले: किसानों के नाम पर करोड़ों की धोखाधड़ी
- ग्वालियर में मृत किसानों के नाम पर ₹4.5 लाख का फर्जी ऋण निकाला गया।
- देवास में ₹86 लाख का गबन सहकारी संस्था के अधिकारियों द्वारा किया गया।
- सागर में 400 किसानों के साथ फर्जी कर्ज और जमा राशियों में गड़बड़ी की गई।
- कृषि उपकरणों की खरीद में कस्टम हायरिंग सेंटर्स के नाम पर करोड़ों रुपये का भ्रष्टाचार हुआ।
ये ऐसे कई उदाहरण है जहा घोटाले हुए है । कही इस ब्रांच में भी ऐसे ही घोटाले की संभावना न हो इसकी जांच होनी चाहिए ।
कैसे होते हैं घोटाले?
सहकारी संस्थाओं में घोटाले आमतौर पर फर्जी ऋण खातों, अपात्र व्यक्तियों को ऋण वितरण, और वसूली में लापरवाही के रूप में सामने आते हैं। कई मामलों में, अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर लाखों रुपये का गबन किया जाता है।
मुख्य अनियमितताएं:
- फर्जी ऋण वितरण: अधिकारियों द्वारा फर्जी नामों पर ऋण स्वीकृत कर धन का गबन।
- डिफॉल्टरों की अनदेखी: जानबूझकर डिफॉल्टरों से वसूली नहीं करना।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: नेताओं द्वारा सहकारी संस्थाओं का निजी लाभ के लिए इस्तेमाल।
- अवैध संपत्ति सौदे: सहकारी संस्थाओं की जमीनों और संपत्तियों को निजी उपयोग में लेना।
किसानों पर प्रभाव:
इन घोटालों का सबसे बड़ा असर छोटे और मझोले किसानों पर पड़ता है। उन्हें समय पर ऋण नहीं मिल पाता, और वे निजी साहूकारों से ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं।
घोटालों के कारण:
- निगरानी की कमी: सहकारी संस्थाओं पर नियमित ऑडिट का अभाव।
- डिजिटलीकरण की कमी: ऋण वितरण और वसूली की प्रक्रिया अभी भी मैन्युअल है।
- सदस्यों की निष्क्रियता: सदस्य संस्थाओं के कामकाज में रुचि नहीं लेते।
- भ्रष्टाचार और मिलीभगत: अधिकारियों और नेताओं की सांठगांठ।
- डिजिटल पारदर्शिता: ऋण वितरण और वसूली को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना।
- सख्त ऑडिट: नियमित और स्वतंत्र लेखा-परीक्षा।
- सदस्यों की भागीदारी: सहकारी संस्थाओं की बैठकों में सदस्यों की सक्रिय भागीदारी।
- कानूनी कार्रवाई: दोषियों पर कड़ी कार्रवाई और सख्त दंड।