मनोज परमार ने तोड़ी जाति की दीवारें, रामलला के दर पर बजा सम्मान का ढोल


मनोज परमार के नेतृत्व में दलित दूल्हे का मंदिर में ऐतिहासिक प्रवेश: 45 साल बाद खुला श्रद्धा का द्वार, रामलला की अर्चना कर भरा सम्मान का भाव | विशेष रिपोर्ट | विधिक आवाज़ समाचार

इंदौर | बेटमा – सांगवी गांव । 15 अप्रैल
सोनिया राठौर संपादक विधिक आवाज समाचार 


14 अप्रैल 2025, जब देश भर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई जा रही थी, उसी दिन इंदौर ज़िले के सांगवी गांव में सामाजिक समानता और आस्था का एक नया इतिहास लिखा गया।

यहां के निवासी दलित युवक अंकित सोलंकी की शादी थी, और परंपरा अनुसार वह अपनी पत्नी के साथ गांव के राम मंदिर में दर्शन हेतु पहुंचा। लेकिन वहां उन्हें जातिगत भेदभाव के कारण मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गया।
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45 साल बाद खुला राम मंदिर का द्वार – पिता की आंखें नम दूल्हे के पिता ने भावुक होकर बताया:

“मैं 45 वर्ष का हो गया, लेकिन आज पहली बार मंदिर के अंदर जाकर भगवान श्रीराम के दर्शन कर पाया हूं।”

उनकी आंखों में गर्व भी था, और पीड़ा भी — वर्षों की उपेक्षा के बाद मिला यह सम्मान उन्हें शब्दों से ज़्यादा भारी लगा।


मनोज परमार का नेतृत्व बना समाज की आवाज़
घटना की जानकारी मिलते ही अखिल भारतीय बलाई समाज के प्रदेश अध्यक्ष श्री मनोज परमार तत्काल सक्रिय हुए। वे खुद दूल्हे के घर पहुंचे और समाजजनों के साथ ढोल-नगाड़ों, जय श्रीराम के नारों और पारंपरिक साज-सज्जा के साथ मंदिर की ओर कूच किया।

यह कोई विरोध नहीं, बल्कि सम्मान और अधिकार की पुनःस्थापना थी।

दूल्हा-दुल्हन ने मिलकर की रामलला की पूजा
मंदिर पहुंचने के बाद दूल्हा अंकित सोलंकी और उनकी नवविवाहिता पत्नी ने राम मंदिर में प्रवेश कर विधिवत पूजा-अर्चना की। पूरे समाज की मौजूदगी में यह दृश्य ऐसा था मानो भेदभाव की दीवारों को भक्ति ने तोड़ दिया हो।

मंदिर परिसर में हुआ हनुमान चालीसा का पाठ


मनोज परमार ने श्रीराम की मूर्ति के समक्ष पहले पूजा की, फिर समाज के लोगों के साथ मंदिर प्रांगण में बैठकर सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया। उनके नेतृत्व में मंदिर परिसर एक सांस्कृतिक और धार्मिक समरसता के केंद्र में बदल गया।

परमार का सटीक संदेश: “राम किसी एक जाति के नहीं, सबके हैं”

मनोज परमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

“मंदिरों के दरवाज़े हर उस व्यक्ति के लिए खुले होने चाहिए जो श्रद्धा से आता है। यह सिर्फ एक प्रवेश नहीं, समाज के आत्म-सम्मान की पुनर्स्थापना है। राम किसी जाति के नहीं, वे पूरे समाज के हैं।”

निष्कर्ष: अंबेडकर जयंती पर मिला वास्तविक सम्मान
जहां देश संविधान निर्माता को श्रद्धांजलि दे रहा था, वहीं सांगवी गांव में वास्तव में संविधान के मूल अधिकारों को जमीन पर उतारा गया। मनोज परमार और समाजजनों के नेतृत्व में यह घटना इतिहास में दर्ज होने योग्य सामाजिक जीत बन गई।

पोस्ट बाय सोनिया राठौर 


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