मुख्यमंत्री योगी का 'कब्जा मुक्त अभियान' बना मज़ाक, अधिकारी सुस्त और भू-माफिया मस्त प्रदेश मे कब्जा मुक्त अभियान की जमीनी हकीकत चिंताजनक?


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भू-माफियाओं के खिलाफ शुरू किया गया 'कब्जा मुक्त अभियान' अब सवालों के घेरे में है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद ज़मीनी हकीकत ये है कि अधिकारियों की सुस्ती और भू-माफियाओं की सक्रियता ने इस अभियान की धार को कुंद कर दिया है।

विधिक आवाज समाचार  |लखनऊ उत्तर प्रदेश 
रिपोर्ट राजेश कुमार यादव। दिनांक 12 अप्रैल 2025 

राज्य के कई जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां सरकारी और गरीबों की जमीनों पर वर्षों से अवैध कब्जा किए बैठे माफियाओं के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन ने कागजों में तो कब्जा मुक्त करवा दिया, लेकिन हकीकत में जमीनें अब भी कब्जे में हैं।

प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता से निराश पीड़ित लगातार अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। कुछ जगहों पर भू-माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण मिलने की भी बात सामने आई है। इससे साफ है कि ‘भू-माफिया मुक्त प्रदेश’ का सपना फिलहाल अधूरा ही है।

अब देखना ये होगा कि सरकार इस अभियान को फिर से धार देने के लिए क्या सख्त कदम उठाती है, या फिर यह भी सिर्फ एक और हवा-हवाई घोषणा बनकर रह जायेगा। 


देवरिया जिले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा चलाए जा रहे 'कब्जा मुक्त अभियान' की जमीनी हकीकत चिंताजनक है। हाल ही में बरियारपुर नगर पंचायत के वार्ड संख्या-7, रघुनाथपुर की निवासी राधिका देवी के साथ घटी घटना ने प्रशासनिक निष्क्रियता को उजागर किया है।

राधिका देवी का मामला: प्रशासनिक उदासीनता का उदाहरण

राधिका देवी को सरकार द्वारा आवंटित भूमि पर वर्षों से झोपड़ी डालकर रह रही थीं। पिछले वर्ष, जब वह कुछ दिनों के लिए गोरखपुर गईं, तो उनके पड़ोसी भू-माफिया—आकाश, अरविंद और राजन—ने उनकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर उनके मकान और जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया। वापसी पर, राधिका देवी को अपने ही घर में प्रवेश करने से रोका गया और विरोध करने पर उन्हें धमकाया गया।

उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ थाना बरियारपुर, जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री तक शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि संबंधित लेखपाल संजय सिंह ने कब्जा हटाने के लिए ₹10,000 की रिश्वत की मांग की, जिसे राधिका देवी देने में असमर्थ थीं। इस प्रकरण में प्रशासन की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार स्पष्ट रूप से सामने आया है ।

सरकार की सख्ती बनाम जमीनी हकीकत

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे के खिलाफ सख्त निर्देश जारी किए हैं। तालाब, भीटा, पोखरा और पार्क जैसी सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ बुलडोजर चलाने की चेतावनी दी गई है । इसके अलावा, देवरिया जिले में 'एंटी भू-माफिया पोर्टल' की स्थापना की गई है, जहां नागरिक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं ।

हालांकि, राधिका देवी जैसे मामलों से स्पष्ट है कि सरकार की सख्ती और पोर्टल की व्यवस्था के बावजूद, स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार के कारण आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

निष्कर्ष

देवरिया जिले में 'कब्जा मुक्त अभियान' की सफलता तभी संभव है जब प्रशासनिक अमला ईमानदारी से कार्य करे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाए। यदि ऐसे मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह अभियान केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा, और आम जनता का विश्वास प्रशासन से उठ जाएगा।

यह खबर उत्तर प्रदेश सरकार के उस अभियान पर सवाल उठाती है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू-माफियाओं के खिलाफ चलाया था। अभियान का उद्देश्य था सरकारी और गरीबों की जमीनों पर से अवैध कब्जे हटवाना और भू-माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।

मुख्य बिंदु विस्तार से:

1. अभियान की घोषणा और उद्देश्य:
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में आने के बाद "कब्जा मुक्त अभियान" की शुरुआत की थी। इसके तहत जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए गए थे कि वे भू-माफियाओं पर कार्रवाई करें और सरकारी भूमि को मुक्त कराएं।

2. अधिकारियों की सुस्ती:
कई जिलों से यह खबर सामने आई है कि स्थानीय प्रशासन इस अभियान को लेकर लापरवाह है। जमीनों पर वर्षों से अवैध कब्जा किए बैठे माफियाओं पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही। कुछ जगहों पर कागजी कार्रवाई करके मामला दबा दिया गया।

3. भू-माफियाओं की मौज:
जिन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई होनी थी, वे अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं। कुछ मामलों में उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है। न तो उनके अवैध निर्माण गिराए गए हैं और न ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

4. पीड़ितों की व्यथा:
जिन गरीबों और किसानों की जमीनें कब्जे में हैं, वे प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। उनकी फरियाद सुनी नहीं जा रही और न्याय की उम्मीद धूमिल होती जा रही है।

5. कागजों में सफल, ज़मीन पर फेल:
रिपोर्ट्स बताती हैं कि अफसरों ने फर्जी आंकड़े भेजकर अपनी पीठ थपथपाई है, जबकि जमीनी स्तर पर जमीनें अब भी कब्जे में हैं।

निष्कर्ष:
योगी सरकार का "कब्जा मुक्त अभियान" कागजों और घोषणाओं तक ही सीमित होता दिख रहा है। अगर प्रशासनिक अमले की निष्क्रियता और भू-माफियाओं की सक्रियता ऐसे ही बनी रही, तो यह अभियान आम जनता का विश्वास खो देगा।
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