भागलपुर, जो अपनी कतरनी चावल और जर्दालु आम के लिए प्रसिद्ध है, एक और कुख्यात घटना के लिए भी जाना जाता है—आंखफोड़वा कांड। 1979-80 के दौरान पुलिसिया जुल्म का ऐसा दौर चला, जिसने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। इस भयावह कांड में 33 लोगों की आंखों को तेजाब डालकर जला दिया गया, जिसे ‘गंगाजल’ नाम दिया गया।
विधिक आवाज़ समाचार | रिपोर्ट: राजेश कुमार यादव भागलपुर, बिहार | 30 मार्च 2025
क्या था आंखफोड़वा कांड?
1979-80 के दौरान बिहार के भागलपुर में अपराध चरम पर था। लूट, हत्या और डकैती की घटनाएं आम हो गई थीं। इस पर लगाम लगाने के लिए पुलिस ने एक गुप्त ऑपरेशन चलाया, जिसका नाम ‘गंगाजल’ रखा गया। इस ऑपरेशन के तहत अपराधियों को पकड़ने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश करने से पहले उनकी आंखें फोड़ दी जाती थीं और फिर उनमें तेजाब डाल दिया जाता था। पुलिस का यह कृत्य जल्द ही खुलासा हो गया, जब एक जज ने कोर्ट में एक अभियुक्त से उसकी आंखों की हालत के बारे में पूछा। जब पीड़ित ने आपबीती सुनाई, तो पूरा मामला उजागर हुआ और पूरे देश में सनसनी फैल गई।
पीड़ित परिवारों की दर्दनाक दास्तान
आज, इस कांड के पीड़ितों में से कई की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनके परिवार अब भी उस बर्बरता के दंश को झेल रहे हैं। उमेश यादव, जो इस कांड के पहले शिकार बने, उनके बेटे ने बताया कि उनके पिता इस घटना के बाद जिंदगीभर अंधेपन के साथ संघर्ष करते रहे। भीख मांगकर परिवार का पालन-पोषण किया और सरकार से मिलने वाली मदद के इंतजार में जिंदगी बिता दी।
"जब पिता जेल से बाहर आए, तो वे कमाने लायक नहीं रहे। सरकार ने सरकारी नौकरी और मुआवजे का वादा किया था, लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला। आज मैं एक सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर किसी तरह परिवार का गुजारा कर रहा हूं," उमेश यादव के बेटे ने नम आंखों से बताया।
भागलपुर की काली छाया: आज भी जिंदा हैं जख्म
इस कांड का प्रभाव भागलपुर पर आज भी देखा जा सकता है। शहर के बुजुर्ग बताते हैं कि वह दौर पुलिस के खौफ का था। अपराधियों के साथ-साथ कई निर्दोष लोग भी इस अत्याचार का शिकार हुए। आज भी यह मामला न्याय और मानवाधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बना हुआ है।
‘गंगाजल’ फिल्म और सच्चाई का आईना
बॉलीवुड में इस कांड पर आधारित फिल्म ‘गंगाजल’ बनी, जिसमें अजय देवगन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म ने इस घटना को पर्दे पर उकेरते हुए पुलिस बर्बरता और न्यायिक व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया। हालांकि, पीड़ित परिवारों का कहना है कि सिनेमा के पर्दे पर दिखाई गई कहानी के पीछे का असली दर्द वे ही जानते हैं।
क्या मिला न्याय?
इस कांड में शामिल पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई, कुछ को सजा भी हुई, लेकिन पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल सका। सरकारी सहायता और पुनर्वास योजनाएं कागजों में रह गईं, जबकि प्रभावित परिवार बदहाली में जिंदगी बिता रहे हैं।
समाज और सरकार से उम्मीद
भागलपुर आंखफोड़वा कांड भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक काला अध्याय है। आज जरूरत इस बात की है कि ऐसे मामलों की पुनः समीक्षा हो, और जिन पीड़ित परिवारों को आज तक न्याय नहीं मिला, उन्हें न्याय मिले। यह केवल इतिहास का एक पन्ना नहीं, बल्कि एक सबक भी है कि कानून के रखवाले ही कानून तोड़ने लगें, तो अराजकता जन्म लेती है।