इंदौर | औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में यूका कचरा जलाने की प्रक्रिया पिछले 24 घंटे से चल रही है। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक 3,240 किलोग्राम कचरा नष्ट किया जा चुका है, और हर घंटे 135 किलोग्राम कचरे की फीडिंग की जा रही है। प्रशासन का दावा है कि इस पूरी प्रक्रिया पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है और यह पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सच में पूरी तरह सुरक्षित है या फिर आने वाले समय में इसके गंभीर दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं?
विधिक आवाज समाचार समूह से पत्रकार विश्वामित्र अग्निहोत्री की खास रिपोर्ट
औद्योगिक कचरे के सुरक्षित निस्तारण को लेकर पर्यावरणविदों की राय बंटी हुई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन्किनरेशन प्लांट (कचरा जलाने की तकनीक) अगर सही तापमान पर और उचित फिल्टरिंग सिस्टम के साथ संचालित हो, तो यह हानिकारक नहीं होता। लेकिन कई अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का कचरा जलाने से डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसी जहरीली गैसें निकल सकती हैं, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं।
पर्यावरण मामलों के जानकारों का यह भी कहना है कि प्रशासन को स्वतंत्र एजेंसियों से एयर क्वालिटी टेस्ट करवाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जलने वाली गैसें नुकसानदायक स्तर तक नहीं पहुंच रही हैं।
स्थानीय लोग बोले – ‘हवा में अजीब गंध महसूस हो रही है’
पीथमपुर और आसपास के इलाकों में रहने वाले कुछ नागरिकों ने शिकायत की है कि हवा में अजीब सी गंध महसूस हो रही है। स्थानीय निवासी राकेश वर्मा (45) का कहना है, “रात के समय धुआं ज्यादा दिखता है, और कई बार सांस लेने में दिक्कत भी होती है। प्रशासन कह रहा है कि सब कुछ सही तरीके से हो रहा है, लेकिन हमें पूरी तरह आश्वस्त नहीं किया जा रहा।”
हालांकि, दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि औद्योगिक कचरे का सही निस्तारण बेहद जरूरी है, क्योंकि अगर इसे सही तरीके से न जलाया जाए तो यह ज़मीन और पानी को प्रदूषित कर सकता है।
सरकारी रिपोर्ट बनाम जमीनी हकीकत – कौन सही?
सरकारी रिपोर्ट कहती है कि अब तक किसी भी तरह के गंभीर प्रदूषण का मामला सामने नहीं आया है। लेकिन इस प्रक्रिया की स्वतंत्र पर्यावरणीय निगरानी हो रही है या नहीं, इस पर अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है।
पर्यावरणविद डॉ. सुमित वर्मा कहते हैं, "जब तक इसका स्वतंत्र ऑडिट नहीं किया जाएगा, तब तक यह कहना मुश्किल है कि यह प्रक्रिया सुरक्षित है या नहीं। प्रशासन को चाहिए कि इस संबंध में एयर और वॉटर क्वालिटी रिपोर्ट पब्लिक करे, ताकि लोगों को भरोसा हो।”
क्या सरकार इस मामले में पारदर्शिता बरतेगी?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार इस मामले में स्वतंत्र जांच करवाएगी? क्या प्रशासन इस पूरी प्रक्रिया को लेकर पब्लिक हेल्थ और एनवायरनमेंटल ऑडिट कराएगा? अगर सब कुछ नियंत्रण में है, तो सरकार को चाहिए कि वह इसे सार्वजनिक रूप से साझा करे, ताकि लोगों के मन में किसी भी तरह का डर न रहे।
फिलहाल, प्रशासन का कहना है कि निगरानी जारी है और नियमों का पूरा पालन किया जा रहा है। लेकिन क्या वाकई ऐसा हो रहा है या फिर यह सिर्फ कागजी दावे हैं? इसका जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा।
निष्कर्ष – सतर्कता जरूरी है!
औद्योगिक कचरे के निस्तारण की यह प्रक्रिया जरूरी तो है, लेकिन इसकी पूर्ण पारदर्शिता और स्वतंत्र निगरानी उतनी ही आवश्यक है। अगर प्रशासन अपने दावों पर इतना ही भरोसा रखता है, तो उसे स्थानीय नागरिकों को आश्वस्त करने के लिए खुली रिपोर्टिंग और निगरानी डेटा जारी करना चाहिए।
क्या प्रशासन ऐसा करेगा?
क्या इस पूरी प्रक्रिया की असली हकीकत सामने आएगी?
ये सवाल अभी बाकी हैं। लेकिन एक बात साफ है – इसे नजरअंदाज करना एक बड़ी भूल साबित हो सकती है।
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