"क्या एक पिता अपनी ही बेटी के प्रेम और भक्ति की परीक्षा लेने के लिए भगवान से युद्ध कर सकता है?"

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पर्वतराज हिमालय और भगवान शिव का युद्ध: प्रेम और श्रद्धा की विजय

✍ विधिक आवाज़ समाचार | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
रिपोर्ट: राजेश कुमार यादव| दिनांक: 26 फरवरी 2025

हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण प्रसंग मिलता है, जिसमें पर्वतराज हिमालय और भगवान शिव के बीच युद्ध का उल्लेख किया गया है। यह कथा देवी पार्वती (उमा) के भगवान शिव से विवाह से जुड़ी हुई है और श्रद्धा, प्रेम तथा शक्ति के अद्भुत संतुलन को दर्शाती है।

पार्वती की अटूट भक्ति और हिमालय की चिंता
पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती, भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने कठोर तपस्या कर शिव को पति रूप में पाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन पर्वतराज हिमालय इस विवाह के लिए सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि भगवान शिव का स्वरूप अत्यंत गंभीर और तपस्वी जीवन से युक्त है, जो पार्वती के लिए उचित नहीं है।

हिमालय और शिव के बीच युद्ध
पार्वती की दृढ़ निष्ठा और अटल संकल्प के कारण जब पर्वतराज हिमालय को कोई विकल्प नहीं दिखा, तो उन्होंने भगवान शिव को रोकने के लिए उनसे युद्ध करने का निर्णय लिया। अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्होंने भगवान शिव पर आक्रमण किया, लेकिन शिव ने सहजता से उनकी शक्ति को निष्फल कर दिया।

शिव की अनुकंपा और विवाह का संयोग
भगवान शिव ने हिमालय को यह समझाया कि पार्वती उनका अनन्य प्रेम हैं और उनका विवाह उनके लिए ही सर्वोत्तम होगा। शिव ने हिमालय को आश्वस्त किया कि वह पार्वती की सदैव रक्षा करेंगे और उनका जीवन प्रेम व सौहार्द से परिपूर्ण रहेगा।

युद्ध से समर्पण और प्रेम की जीत
अंततः पर्वतराज हिमालय को भगवान शिव की महानता और पार्वती की दृढ़ भक्ति का एहसास हुआ। उन्होंने अपने अहंकार का त्याग कर भगवान शिव के प्रति समर्पण प्रकट किया। इसके पश्चात पार्वती और शिव का विवाह संपन्न हुआ, जिसे "शिव-पार्वती विवाह" के रूप में हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है।

निष्कर्ष
यह कथा केवल एक युद्ध की कहानी नहीं, बल्कि श्रद्धा, प्रेम, समर्पण और दिव्यता की विजय का प्रतीक है। पर्वतराज हिमालय और भगवान शिव के बीच हुआ यह संघर्ष, अंततः पार्वती और शिव के मिलन के साथ प्रेम और भक्ति के रूप में परिणत हुआ, जो सनातन संस्कृति में एक महत्वपूर्ण संदेश छोड़ता है।



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