किसान कर्ज पे सोते जा रहे किसान की पकी पकाई सोयाबीन की फसल हुई ।
किसान के आंसू पूछने के लिए सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों नदारद अबतक नही पहुंचे किसानों के खेतो पर ।
फसल में नुकसानी को लेकर स्वार्थी नेताओ का बोलबाला ।
किसान के आंसू पोछने की सरकार को जरूरत है जरूरी नहीं की किसान को मुवावजा ही दो , उनको उनके फसल का संबंधित बैंक से केसीसी ऋण लिया गया उसके द्वारा प्रीमियम काटी गई उस संबंधित बीमा कंपनी से बीमा क्लेम ही दिलवा दो , वो उनका हक है दान नही है।
मंदसौर ; सीतामऊ तीन दिनों से बारिश के चलते किसानों की फसालें में भारी नुक्सान खेतो में भराया पानी तालाब की तरह दिखने लगे खेत खलियान , कटी हुई सोयाबीन की फसल तेरती हुई दिखाई देने लगी है जिससे किसानों के अरमानों पर पानी फिर गया है , ऐसे में किसान कर्जदार पे कर्जदार होते जा रहे है लेकिन सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों पार्टियों के नेताओ को अभी तक यह दिखाई नही दिया की किसानों का नुक़सान कितना हो रहा है , दोनो पार्टी के नेता ओ को अभी तक किसी भी किसान के खेतो में जाते नही देखा वयोंकि की अभी चुनाव बहुत दूर है अगर यह समय चुनाव का माहोल होता तो अबतक तो दोनो पार्टी के नेताओ की खेतो में झड़ी लग जाती मानो की रात और दिन भी खेतो में ही बीता देते। पर क्या करे चुनाव में अभी बहुत समय हे किसान एवं आमजन की याद तो तभी आती है जब चुनाव करीब होते इस बीच किसे भी किसान और आमजन की चिंता नही होती , आपको बता दे की दवाई वाले ने दवाई बेच दी बिजवारे वाले ने बिजवारा बेच दिया अब किसान किया बेचे , जो बेचने के लिए काफी मेहनत लगन फसल को पकाई थी वो भी तीन दिनों से बारिश गिरने से खराब हो गई जिससे किसान पूरी तरह तबाह हो गया है किसान क्या बेचे की जो लेनदेन किया था जिस से लिया था , की सोयाबीन पर फसल पकने के बाद दे देंगे लेकिन अब किसान कैसे कर्ज चुकाएगा। किसान आत्म हत्या नही करता उसको उसकी मजबूरी करवाती है ।
बारिश से सोयाबीन की फसल बर्बाद:खेतों में रखी फसल सड़ने लगी, खेती के लिए पत्नी के गहने गिरवी रखे थे दरअसल, इस साल ज्यादातर किसानों ने जिले में सोयाबीन की बुवाई की थी। शुरू में कम बारिश होने से फसलें भी अच्छी थी। किसानों ने 2000 से 2500 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से मजदूरों से फसल को कटवा कर खेतों में रख दिया था।
मजबूरियां क्या क्या नही करवा देती । किसान अन्नदाता होता है किसान से पूछो किसान की आस नही रहती उसके पूरे परिवार की आस रहती है फसल के ऊपर, फसल पकने पर किसान को क्या करना है क्या नही करना वो पहले से ही गुण भाग लगा लेता है की फसल को बेचकर फलाने चंद जी के पैसे देने है मजदूरों के पैसे देने है सब के देने के बाद जब जो हाथ में बचता है उसी से जीवन का गुजर बसर करता है। किसान का हाथ खाली ही रहता है , अब ऐसी परिस्थिति में किसान के आंसू पोछने की सरकार को जरूरत है जरूरी नहीं की किसान को मुवावजा ही दो , उनको उनके फसल का संबंधित बैंक से केसीसी ऋण लिया गया उसके द्वारा प्रीमियम काटी गई उस संबंधित बीमा कंपनी से बीमा क्लेम ही दिलवा दो , वो उनका हक है दान नही है।
विधिक आवाज न्यूज़
रिपोर्टर श्यामलाल चंद्रवंशी पत्रकार